Rice cultivation (Hindi) -2

 ü  बीज दर : - बुवाई द्वारा - 60 -80 kg /है

    छिड़कवाँ विधि द्वारा - 100 kg /है

     हाइब्रिड धान - 15 -20  kg /है

     नर्सरी से - 1.5  से 3  kg /m2

v नर्सरी तैयार करने की विधियां -

1.   गीली क्यारी विधि -

ü  1 हैक्टर के लिए -1000 m2 क्षेत्र

ü  बीजदर 40-50 किलोग्राम

ü  रोपाई - 20-25 दिन बाद या 3-4 पत्तियां आने पर।

2.   डेपोंग विधि -

ü  फिलीपींस में  सबसे ज्यादा अपनाई जाती है।

ü  11 -14 दिन बाद पौध तैयार।

ü  1 हैक्टर में रोपाई के लिए 25 -30 m2 क्षेत्र।

ü  बीजदर - 1.5 से 3 किलो /M2

ü  पक्के फर्श पर जूट के टाट या पॉलीथिन ढक कर।

3.   SRI विधि (System of Rice Intensification)-

ü  यह विधि मेडागास्कर विकसित हुई।

ü  1983 में फादर हेनरी उ लाउलेनी ने technique का आविष्कार किया।

ü  इसमें बीज,पानी व समय की बचत होती है  तथा रसायनो का प्रयोग बहुत कम किया जाता है।

ü  पौधो को 25 X 25 cm पर रोपाई करते है।

ü  नर्सरी - 100 m2 - 5 kg बीज

v खाद एवं उर्वरक : -

F नाइट्रोजन 100 kg फास्फोरस 60 kg पोटास 60 kg प्रति हैक्टर।

F खेरा रोग  रोकथाम के लिए ZnSo4 @25 kg /hac .

F सबसे उपयुक्त नाइट्रोजन उर्वरक अमोनियम सलफेट।

F नाइट्रोजन की मात्रा ज्ञात करने के लिए लीफ कलर चार्ट (LCC) का प्रयोग करते है।

F धान की फसल में जीवाणु उर्वरक जैसे- अजोला, नील हरित शैवाल तथा एजोटोबैक्टर मुख्य है।

F नील हरित शैवाल -20 -30 kg /hac/वर्ष नाइट्रोजन स्थिरीकरण करता है।

v सिंचाई : -

F जलमांग -900-2500 MM

F खेतों में 5 cm पानी हमेशा रहना चाहिए।

F पडलिंग: - धान की बुवाई पूर्व खड़े पानी की अवस्था में मृदा को पडलर की सहायता से जुताई करना पड़लिंग कहलाता है। इसका मुख्य उद्देश्य फसल में खरपतवार नियंत्रण करना है तथा पोषक तत्वों की उपलब्धता को बढ़ाना है।

F पडलिंग में 2 क्षेत्र विकसित होते हैं - खेत का ऊपरी क्षेत्र जो कि 1 से 10 mm या 1 सेंटीमीटर होता है जिसमें ऑक्सीजन की मात्रा होती है उसे ऑक्सीकृत क्षेत्र या Oxidized Zone बोला जाता है जबकि निचे का क्षेत्र जहां पर ऑक्सीजन अनुपस्थित रहती है उसे अपचयित क्षेत्र (Reduced Zone) कहते हैं।

F धान की फसल में नाइट्रोजन उर्वरक अमोनिकल रूप में प्रयोग करते हैं जो इसी क्षेत्र में डाले जाते हैं।

v खरपतवार :- 

F जंगली धान - Echinocloa colonum

F सांवा घास - Echinocloa crusgaili  यह दोनों मुख्य खरपतवार हैं।

F धान की खड़ी फसल में क्रॉस हल चलाकर खरपतवार या अधिक पौधों को निकालने की प्रक्रिया Beushining  कहलाती है।

v खरपतवार प्रबंधन : - 

F प्रोपेनिल (स्टाम एफ़ -34 ) - धान की रोपाई के बाद या अंकुरण बाद (PoE)  काम में लेते हैं।

F बेन्थियोकार्ब - 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर सक्रीय तत्व अंकुरण से प्रयोग करते हैं।

F ब्यूटाक्लोर - 1.5 kg प्रति हेक्टेयर अंकुर से पूर्व प्रयोग करें।

v कीट प्रबंधन :-

1.   धान का पीला तना छेदक कीट (Tryporyza incertulus)

F धान का प्रमुख कीट है इसकी लटे पौधे के तने पर छेद कर मुख्य परोह को सूखा देती है जो dead heart  कहलाता है।

F जिन पौधों पर कीट का प्रकोप जल्दी होता है उनमें बालियां दानों के बिना रह जाती है जिसे सफेद बाली कहते हैं। इससे धान की बासमती किस्मे सबसे ज्यादा प्रभावित होती है।

F नियंत्रण :-  कारटॉप हाइड्रोक्लोराइड 4 G @ 2.5 kg /hac की दर से छिड़काव करे।

2.   धान का गन्धी बग कीट (Leptocorisa acuta) –

F इस कीट को स्पर्श करने पर एक प्रकार की दुर्गन्ध आती है इसीलिए इसका नाम गन्धी बग पड़ा।  इसके नियंत्रण मेलाथियान 50 EC -625 ml /hac की दर  करे।

3.   धान का हिस्पा कीट (Diclodispa armigera)

4.   ग्रीन लीफ हॉपर (Nephottefix virsecence)

5.   धान का गॉल मिज (Orseolia oryzae)

v रोग प्रबंधन : -

1.   धान भूरा पत्ती धब्बा रोग (Brown leaf spot ): -

F C.O. - Helmenthosporium oryzae

F अन्य नाम - Drechslera oryze एवं Cochliobolus miyabeanus

F 1943 में बंगाल में इसी बीमारी कारण अकाल पड़ा था। इसलिए इसे बंगाल फेमिन (Bangal famine) कहा जाता है।

F पोटाश की कमी के कारण।

F इसके उपचार के लिए मेंकोजेब 0.25 % का छिड़काव करना चाहिए।

2.   धान का ब्लास्ट रोग : -

F CO - Pyricularia oryzae fungus

F इस रोग का अधिक प्रकोप होने पर पूरी फसल जली हुई सी दिखाई देती है।

F यह रोग फुटाव की अवस्था पर लगता है तथा 20 -220 C अधिक फैलता है।

F इसके उपचार के लिए 500 ग्राम कार्बेन्डाजिम 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।

3.   जीवाणु पत्ती झुलसा रोग –

F CO- Xanthomonas oryzae बैक्टीरिया

F पौधो में बैक्टीरियल रोगो का पता लगाने के लिए Ooze test  है।

F नर्सरी अवस्था में प्रकोप होने पर इसे क्रेसेक (Kresek ) रोग भी कहते है।

F 0.01 % स्ट्रेप्टोसाइक्लीन एवं 0.3 % Coper oxychloride का छिड़काव।

4.   धान  का टुंग्रो रोग : -

F वायरस जनित रोग

F ग्रीन प्लांट हॉपर (Nephottetix virscence) द्वारा फैलता है।

F Rice tungro spherical virus (RTSV) Rice tungro bacilliform virus (RTBV) दो प्रकार के वायरस से होता है।

F पौधो में वायरस जनित रोगों का पता लगाने के लिए - Enzyme-linked immunosorbent assay (ELISA)Test .

5.   धान का खैरा  रोग :-

F ज़िंक की कमी कारण

F इस रोग का पता सबसे पहले 1966 में Y L Nene ने पंतनगर में लगाया।

F लक्षण - बुवाई के 2 -3 सप्ताह में दिखाई देते है।

F पतियों पर कत्थई रंग के धब्बे दिखाई देते है। पौधो की वृद्धि रुक जाती है।

F 5 kg Zinc sulphate /hac प्रयोग करें।

v कटाई : -

ü  धान  विभिन्न किस्मे लगभग 100-150 दिन में पक जाती है।

ü  10 -15 दिन पहले पानी बाहर निकाल देना चाहिए।

ü  धान  को 14 % नमी रहने सुखाना चाहिए।

v उपज :-

ü  औसत उपज -35 -45 क्वांटल /hac

ü  बौनी किस्मों से - 50 -80 क्वांटल /hac

ü  संकर  किस्मों से - 60 - 70 क्वांटल /hac

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