पवन एवं पवनों के प्रकार (Wind and types of Wind)
v परिभाषा: - “ क्षेतिज गति से पृथ्वी के समांतर प्रवाहित होने वाली वायु
को पावन की संज्ञा प्रदान की जाती है।“ या
“पवन ऐसी गतिशील वायु है,
जिसकी दिशा आवश्यक रूप से पृथ्वी तल के समांतर होती है “
ü वायुमंडल मे ऊर्ध्वाधर तथा क्षेतिज दो प्रकार की गतियाँ होती है
ü जब वायु धरातल से उपर की ओर या उपर से नीचे की ओर गतिशील होती है
तो इस गति को वायु तरंग कहते है । इस गति को समान्यत हम अनुभव नही कर पाते है।
बादलों की उत्पति, वर्षा , आदि घटनाए ऊर्ध्वाधर
गति का ही परिणाम है ।
ü जब वायु पृथ्वी के समानान्तर क्षेतिज गति होती है तो उसे पवन कहा
जाता है।
ü पवने जिस दिशा मे चलती उसके अनुसार ही इनका नामकरण किया जाता है
जैसे यदि पूर्व दिशा की ओर से पवन आ रही है तो इसे पूर्वा तथा यदि पश्चिम दिशा से
आ रही है तो इसे पछुआ हवा कहा जाता है।
v पवनों के प्रकार
1. व्यापारिक हवाए (Trade Winds):- भूमध्य रेखा पर निरंतर अधिक तापमान के कारण वहाँ की हवा उपर की ओर उठ जाती है।इस प्रकार यहा 50 N से 50 एस अक्षांशों के बीच निम्न वायु दाब क्षेत्र बन जाता है । जिसे डोलद्रुम या शांत पेटी कहते है । इन क्षेत्र से उठी हवाए 350 Nसे 350 S अक्षांशों पर उच्च दाब बना देती है । उतरी गोलार्द्ध मे इन हवाओ की दिशा उतार-पूर्व से दक्षिण पश्चिम की ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध मे इन हवाओ की दिशा दक्षिण – पूर्व से उतर-पश्चिम की ओर होती है। इन हवाओ की नियमित दिशा मे गति करने कारण प्राचीन कल मे व्यापारियो को जलयानो के संचालन मे बहुत सुविधा होती थी इसी लिए इन्हे व्यापारिक हवाए कहा जाता है।
पछुआ हवाए (West Winds) : - इन हवाओ का क्षेत्र दोनों गोलार्द्ध मे 600 – 650 अक्षांशों के बीच स्थित है जिसे उपधूर्वीय निम्न दाब पेटी कहते है । इस क्षेत्र मे हवाए उपोष्ण कटिबंधीय उच्च दाब क्षेत्र से उपधुरवीय निम्न दाब क्षेत्र की ओर बहती है । इनके बहाव की दिशा व्यापारिक हवाओ के बहाव की दिशा के ठीक विपरीत होती है । पश्चमी पवन पछुआ हवाओ को 400 दक्षिणी अक्षांश के पास – गरजता चालीसा , 500 दक्षिणी अक्षांश के पास- प्रचंड पचासा, 600 दक्षिणी अक्षांश के पास - चीखता साख कहा जाता है।
3. पूर्वा हवाए (East Winds) : - ध्रुवो पर तथा उसके निकटवारती क्षेत्रों मे अत्यंत ठंड के कारण वायुदाब काफी ऊंचा होता है जिसके फलस्वरूप हवाए ध्रुवीय उच्च दाब क्षेत्र से उपध्रुवीय निम्न दाब क्षेत्र की ओर बहती है । ये हवाए उतरी गोलार्द्ध मे उतर-पूर्व से तथा दक्षिणी गोलार्द्ध मे दक्षिण-पूर्व दिशा से चलती है। इसीलिए इन्हे ध्रुवीय पूर्वी हवाए भी कहते है।4. स्थानीय हवाए (Local Winds): -
A.
स्थल एवं समुंद्री हवाए (Land and sea breeze): - समुन्द्र ओर समुन्द्रतटीय स्थल के बीच असमानतापमान और प्रशीतन के
कारण हवा के परस्परिक आदान प्रदान को स्थल और समुंद्री समीर कहते है।
ü दिन के समय समुन्द्र तटीय स्थल स्मून्द्री जल की अपेक्षाबहुत तेजी
से गर्म हो जाता है इस प्रकार तटीय स्थल पर हवा का निम्न दाब पैदा हो जाता है
जिसके कारण समुन्द्र के उच्च दाब की ओर से स्थल की ओर हवाए चलती है जिसे समुंद्री
समीर कहते है ।
ü रात मे स्थल भाग समुन्द्र की अपेक्षा तेजी से ठंडा होता है जिसके
फलस्वरूप स्थल पर उच्च वायुदाब बन जाता है तब हवा स्थल से समुन्द्र की ओर बहने
लगती है जिसे स्थल समीर कहते है ।
v पर्वतीय और घाटी समीर (Mountain and Vally Breeze)
ü ये हवाए भी पर्वत ओर घाटी के बीच आसमान तापमान और प्रशीतन के
फलस्वरूप प्रवाहमान होती है ।
ü दिन के समय प्र्वतीय भागों पर वायुमंडलीय दाब कम होता है तथा घाटी
मे सूर्य का प्रकाश सीधा नही पहुँचने के कारण वायुमंडलीय दाब अधिक होता है तो हवाए
घाटी के पेंदे से पर्वत की ओर बहती है इन्हीहवाओ की घाटी समीर(Day breeze/vally breeze/anabatic breeze) के नाम से जाना जाता
है ।
ü रात के समय मे पर्वतीय भाग वायु दाब अधिक हो जाता और घाटी का
वायुदाब कम हो जाता है तो हवाए पर्वत से घाटी की ओर प्र्वहित होने लग जाती है
इन्ही हवाओ को mountain breeze/ night breeze/katabatic breeze के नाम से जाना जाता
है ।
5. मानसूनी हवाए (Mansoon Winds): -
ü महाद्वीपो और महासागरों के आसमान तापमान और प्रशीतन के कारण स्थल
और महासागरों के बीच हवाओ के आदान प्रदान को ही मानसुनी हवाए कहा जाता है ।
ü मानसून अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ मौसम होता है । मानसून को
हिन्दी मे पावस कहते है और मानसुनी हवाओ को पावसी हवाए कहते है। परंपरागत रूप से
मानसुनीहवाए उन हवाओ को कहते है जो किसी मौसम विशेष मे ही चला करती है ।
ü गर्मी मे समुन्द्र की अपेक्षा स्थल अधिक गरम हो जाता है जिसके
फलस्वरूप स्थल पर निम्न वायुदाब बन जाता है तब हवाए समुन्द्र से स्थल की ओर
प्र्वहित होती है ।
ü सर्दी मे स्थल समुन्द्र की अपेक्षा जल्दी ठंडा हो जाता है जिसके
कारण स्थल पर उच्च दाब उत्पन्न हो जाता है जिसके फलस्वरूप हवाए स्थल से समुन्द्र
की ओर प्र्वाहित होने लगती है ।
भारतीय उपमहाद्वीप मे दो प्रकार की मानसुनी
हवाए चलती है –
ü दक्षिणी –पश्चिमी मानसूनी हवाए (South-west mansoon Winds)
ü उतर-पूर्वी मानसूनी हवाए (North-East mansoon Winds)
v दक्षिणी –पश्चिमी मानसूनी हवाए (South-west mansoon Winds)
ü भारतीय उपमहाद्वीप उतर-पूर्वी व्यापारिक हवाओ के क्षेत्र मे स्थित
है,जो
पूरे वर्ष भर चलती रहती है परन्तु गंगा नदी के क्षेत्र और उतरी भारत मे निम्न
दाब बना रहता है जिसके कारण दक्षिण पश्चिम
हवाए अधिक प्रभावशाली रहती है ।
ü अप्रैल से सितम्बर तक उतर पश्चिम भाग मे निम्न दाब केंद्र बन जाता है । तब हिन्द महासागर से दक्षिण पश्चिमी
व्यापारिक हवाए भूमध्य रेखा की ओर बहने लगती है , जो केरिओप्सिस प्रभाव
के कारण भारत मे दाहिने तरफ निम्न वायुदाब क्षेत्र की ओर मुड़ जाती है।
ü ये नमी से लदी हुई हवाए एशियाई पर्वतों की ओर उठती हुई ,
ठंडी होने लगती है और उनमे उपस्थित जलवाष्प संघनन कीकरियाओ के फलस्वरूप द्रवीभूत
होकर वर्षा करने लगती है।
v उतर – पूर्वी मानसुनी हवाए (North-East mansoon Winds)
ü ये हवाए अक्टूबर से नवंबर तक सक्रिय रहती है । इस दौरान पूर्वी
एशियाई क्षेत्र मे उच्च वायुदाब क्षेत्र बन जाता है फलत: हवाए उतर पूर्व से बहने
लगती है ये हवाए स्थल की ओर से आती है इसीलिए शुष्क और नमी रहित होने के कारण भारत
मे प्राय : कोई वर्षा नही होती ।
6. चक्रवात और प्रतिचक्रवात (Cyclone and Anticyclone)
v चक्रवात (Cyclone): - यह
एक प्रकार का वायुमंडलीय उपद्रव (Atmospheric disturbance)
है जिसके तहत किसी स्थान विशेष पर निम्न वायुदाब केंद्र बन जाता है तब हवा के बहाव
की दिशा केंद्र की ओर हो जाती है ।
ü इस केंद्र के चारों तरफ बंद समदाब रेखाए विस्तृत हो जाती है । इस
प्रकार केंद्र से बाहर की ओर वायुदाब बाद जाता है परिणामत : परिधि से केंद्र की ओर
हवाए चलने लगती है ।
ü जिसकी दिशा उतरी गोलार्द्ध मे anticlockwise तथा दक्षिणी गोलार्द्ध
मे clockwise
होती है । इस प्रकार केंद्र मे निम्न दाब के साथ निकट समदाब रेखाओ की इस प्रणाली
की चक्रवात कहते है ।
ü इनका आकार प्राय गोलाकार, अंडाकार या V shape
मे होता है ।
ü चक्रवातों का जलवायु तथा मौसम पर भरी प्रभाव पड़ता है । जब इनकी गति
अत्यधिक हो जाती है तो इन्हे Gale कहते है।
v प्रतिचक्रवात (Anticyclone)
ü ये चक्रवातों के विपरीत दशाओ एवं विशेषताओ वाले होते है ।
ü इनमे केंद्र मे उच्च दाब बन जाता है जिससे बाहर की ओर चारों दिशाओ
मे हवाए चलने लगती है ।
ü यह एक ऐसी वायु संचरण प्रणाली है जिसमे केंद्र पर समदाब रेखाए और
उच्च दाब होता है । प्रतिचक्रवात की दिशा उतरी गोलार्द्ध मे clockwise
तथा दक्षिणी गोलार्द्ध मे Anticlockwise होती है।
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